भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रे जागो, बीती स्वप्न रात! / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
रे जागो, बीती स्वप्न रात!
मदिरारुण लोचन तरुण प्रात
करती प्राची से पलक पात!
अंबर घट से, साक़ी हँसकर,
लो, ढाल रहा हाला भू पर,
चेतन हो उठा सुरा पीकर,
स्वर्णिम शाही मीनार शिखर!