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रेखाएं / भारती पंडित
Kavita Kosh से
हाथों की अनंत रेखाएं
चिकनी, समतल या कटी-फटी
कभी छोटी या लम्बी दौड़ती सी
हर रोज इन्हें मैं
गौर से देखा करती हूँ ..
जब मिल जाती है अनायास सफलता
तो इन लकीरों में एक
नई लकीर खोज लेती हूँ
कि भाग्य साथ दे रहा है
यही रेखाएं बना जाती है
संबल अक्सर मेरा
जब प्रयत्नों के बाद भी
असफलता हाथ आते है
तो इनमें ढूंढ लेती हूँ
एकाध कटी-फटी 'रेखा'
और बनाती हूँ पोजिटिव ऐटीट्यूड
कि किस्मत ही खराब है |