भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत (2) / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोसों तक जब सिर्फ सन्नाटा गूंजता है
तब बजाता है आदमी
बांसुरी, अळगोजा
मोरचंग, खड़ताल
रावणहत्था या सांरगी
बहुत अकेला हुआ आदमी
तब गाता है रेत राग।