भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत (आठ) / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
टाबरां रै भेळी है रेत
मा रो दूध पीयां पछै
पैलड़ो जीमण है रेत।
नीं जात पूछै
ना ई पूछै नांव
टाबर सीधो
धापÓर खावै
दोनूं हाथां सूं रेत।
हेत करै
टाबरां सूं रेत
नीं डरावै
नीं धमकावै
चोखी लागै टाबरां नै
आ रेत।
टाबरां रो
सांगोपांग हेत
रेत, रेत, रेत।