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रोज़ा लक्सम्बुर्ग का शव / अम्बर रंजना पाण्डेय

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“Freiheit ist immer die Freiheit des Andersdenkenden"
(Rosa Luxumburg born: 05/03/1871 Death: 15/01/1919)


भौंहों के बीचोंबीच बन्दूक़ की गोली से हुए छिद्र से पानी
टपकता है कवियों के लिए सबसे सुन्दर दृश्य ।

फिर कोई विदेशी इतना विदेशी नहीं होता कि उसके
विचार से प्रेम न किया जा सके । चार मास पुराने
शव की नदी से होती वह भव्य लड़ाइयाँ इतिहास के
विषय और कविता की निराशा ही नहीं है । ( पँक्तियाँ
यहाँ की कवि से खो गई हैं,
यों कवि ने बताया ।) मछलियों
ने प्रेम किया चार मास रोज़ा लक्सम्बुर्ग के शव से
नदी में । उस शव को एक दिन अचानक मनुष्य आए
निकाल ले गए । स्वतन्त्र चेता मनुष्य का माँस छह
हाथ के गड्ढे में ठूँसकर क्या मिलेगा, मछलियाँ सोचती
रहीं । विचित्र है मनुष्यों की रीतियाँ । अपने सबसे
प्रिय मनुष्यों को बक्सों में क्यों रखते है या किताबों में दोनों
को जबकि नष्ट किया जा सकता है । रोज़ा लक्सम्बुर्ग
को खा अपना भाग बनाया जा सकता था । शून्य से भी कम
तापमान में दिनों तक रोज़ा लक्सम्बुर्ग नदी में खो

चुकी कितनी सुन्दर देती थी दिखाई । राइफ़ल की नली
माथे पर मारने पर विचार नष्ट नहीं होता है ।
आँखों के बीच गोली चला भी विचार नष्ट नहीं कर सके
होंगे वे । शव को नदी में ज़ोर से फेंक देने पर
भी विचार बचा रह गया मगर याद रखो विचार है
सबसे कोमल संसार में, प्यार में पड़ी धोबन की
हथेलियों से भी कोमल है ।

(२०१९ को रोज़ा लक्सम्बुर्ग की मृत्यु को सौ वर्ष पूरे हो गए ।)