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रोपनी के गीत / केतन यादव

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पंकिल जलमल खेत में पाँव‌ डुबोए‌
स्त्रियाँ सपरिवार गाड़ रहीं
किसी मंगल परब का धान
वही जो रंगाया जाएगा शुभही में
हल्दी से चाउर , किसी दुलहन‌ के‌ खोंइछा में
भरा जाएगा जो , मंडप में बहिना के आंचर में
सजल आँखों गिरेगा जो लावा फूटकर
बाँधा जाएगा हाथ में संकल्प धरे फूल-अक्षत
छींटा जाएगा जो किसी सुहागन अर्थी के पीछे
बो रही हैं वह सब
गीतों में पोर-पोर डूबे ।

अधिया खेत‌ में बो आई पूरे सपने
अबकी फ़सल पर दाँव है
बड़की का ब्याह और छुटके के‌ दसवीं का अगला एडमिशन
रिश्ते का बयाना दे आए हैं बड़की के बाउजी
देकर चार बोरिया पुराना चावल , कहकर
जितना पुराना पका चाउर है उतना निभाएगी हमार बबुनी
खदबद नरम भात पकाएगी भिनसार ।

सब कुछ अब धान भरोसे है
पेट भी पतीला भी
एक पंक्ति में बराबर खड़े-खड़े
रोपा गया‌ सब दुख सब आस
प्ररधान जी के खेत में

रोपनी के गीत‌ गा-गा कर
रोपा गया धान
सपने‌ में लहरा रहा बार-बार
बरखा को भेज देना इंदर महराज
तुम्हारे नाम होगा पहला ज्योनार
रख लेना अक्षत भर लाज बस ।