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रोहिंग्या / राजेश कमल

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सारी बसुधा को
कुटुंब मानने वाले मुल्क के
नायकों
क्या
भूखे
नंगे
रोते
बिलखते
बेघर
बीमार मनुष्यों के लिए
अपने घर के दरवाजे बंद कर लोगे
क्या किसी से उसका मजहब
पूछ के हाथ मिलाओगे
क्या किसी से गले
उसकी जाति पूछ के लगोगे
क्या मुहब्बत
पता ठिकाना पूछ के करते हो
इन सवालों के सामने
ख़ामोश रहोगे
हक्लाओगे
या ढीठ बन जाओगे
अब क्या बचा है
मिटा भी डालो
जो अपने घर के दरवाजे पर लिखा है
अतिथि देवो भव