भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोहित / सुतपा सेनगुप्ता
Kavita Kosh से
रोहित
पता है?
मैंने बहुत पहले ही तुम्हें देख लिया था
हथेलियों की छुअन पाने के भी
बहुत पहले
वे लोग तुम्हें नादान कहते थे
वे तुम्हें सर्वनाश भी कहते हैं
नाख़ून की नन्हीं परिधि में
उभर आए जवाकुसुम
धीवर, तुम्हारे मारण-जाल में
बहुत वर्षों पहले
चुपके से मैंने
एक छेद कर दिया था!
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी