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रौशनी के दिये हम जलाते रहे / रंजना वर्मा
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रौशनी के दिये हम जलाते रहे
लोग आ आ के लेकिन बुझाते रहे
था अँधेरा बहुत लड़खड़ाते कदम
फिर भी हिम्मत सभी आजमाते रहे
है अजब ऐसी दरियादिली दोस्तों
अपने साये को भी वो हटाते रहे
आज वादा किया कल भुला भी दिया
उम्र सारी उन्ही से निभाते रहे
मोड़ पर हर बदलते रहे राह वो
फूल हर राह पर हम लुटाते रहे
सेज तरसी रही सलवटों के लिये
रोज चादर नयी हम बिछाते रहे
दर्द की दास्ताँ आँसुओं ने कही
कोशिशों से जिसे हम छिपाते रहे
एक दरिया उमड़ता रहा दर्द का
कश्तियाँ सबकी तूफ़ां डुबाते रहे
जख़्म दे कर हमें वक्त घायल हुआ
चोट पर उस की मरहम लगाते रहे