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लगातार बारिश / ग्युण्टर ग्रास / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
फैलती जाती है दहशत, धमकी दे रहा नवम्बर ।
धूप से नहाते लम्बे दिन मिलेंगे अब कभी नहीं
आख़िरी मक्खियाँ गिरती हैं दीवार से धरती पर,
समय के फ़ास्ट फ़ूड के बाद निश्चलता ही बची रही ।
मकान मालिक की चिन्ताएँ बुनियाद पर आधारित,
आज निबटना पड़ सकता है कल के खोटे काम से ।
नौजवान जो, - अभी से जर्जर – पेंशन के लिये चिन्तित ।
और जनता के वो प्रतिनिधि रहते हैं आराम से ।
डर के मारे कर लिया उन्होंने दुगुना अपना भत्ता ।
टाई पहने स्किनहेड को पदक मिले अलबत्ता ।
इस कारोबार के भविष्य का अब भी जो है कायल,
युगधर्म का नशा उसको कर चुका है घायल ।
दो-तिहाई बहुमत साथ उसके, जो डर से एक होता;
नवम्बर की इस बारिश में एक विदूषक रोता ।
मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य