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लगै जब हियमें लगन भजन की / स्वामी सनातनदेव

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राग भैरव, ताल मूल 12.8.1974

लगै जब हिय में लगन भजन की।
भूलि जाय तन-मन हूँ की सुधि, लागै ललक ललन की॥
जब लौं मन भटकत विषयन में रुचत न बात भजन की।
कैसे लगै लगन मोहन में, होय दसा विरहिन की॥1॥
इत सों हटै डटै तब ही उत, पावै जुगति भजन की।
भावें प्रीतम ही प्रीतम तब, रहै न रति विषयन की॥2॥
विनु प्रीतम न सुहाय, जाय फिर चिन्ता करन-धरन की।
बाढ़ै विरह-अनल पल-पल अरु भूलै असन-वसन की॥3॥
ऐसो होय तबहि जानहु अब कृपा भई मोहन की।
बिना कृपा कैसे रति जागै, जहाँ न गति या मन की॥4॥
फिर तो रहै एक मनमोहन, सुरति जाय तन-मन की।
मोहन ही की लीला भासै गति-मति सब त्रिभुवन की॥5॥

शब्दार्थ
<references/>