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लजवन्ती / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
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अजगुत रस-रूप रंग लजवन्ती;
कण-कण में जल-तरंग लजवन्ती।
चार पहर जिनगी के डोलै छै
एक पल असंख्य बात बोलै छै,
नस-नस बेबस उमंग लजवन्ती!
मुहुर-मुहुर कैन्हें सकुचाबै छोॅ?
मन-विरोधि तोंहें की पाबै छोॅ?
की नाता द्वन्द-संग लजवन्ती?
आखर में कुंडली समैलोॅ छै,
जन्म बीच एक घड़ी ऐलोॅ छै
बारोॅ मत राग-रंग लजवन्ती!