भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़का आँख मारे / उमेश बहादुरपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लड़का आँख मारऽ हे अम्मा, ई लड़का आँख मारे
धीरे से हम्मर कान में बोले देदऽ एगो चुम्मा
ई ....
हम कुँआरी भोली-भाली ई रस्ता से इंजान
जे भी देखे उहे पुकारे आ जा हम्मर जान
मन-मयूरा ऐसे नाचे जइसे छमाछम छम्मा
ई...
दिल्ली के ई सपना दिखावे कभी कभी बनारस के
कभी कहे आ जइहऽ पूनम आधीरात अमावस के
काहे हम्मर पाछु धरऽ हे बैरी सब ई निकम्मा
ई ....
कभी ई हमरा पाछू दिखावे कभी दिखावे आगू
बड़ा रँगीला निकलल अप्पन ई त शहरी बाबू
हमरा ऊ बहियाँ में भरके बोले तमातम तम्मा
ई ...
कभी कहे आ जइहऽ रानी कभी कहे दिलजानी
दाव लगा के कखनो भी ऊ कर लेहे मनमानी
बरसा प्यार के कर देहे ऊ तखने छमाछम छम्मा
ई ....