भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लड़की / जय चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
घर से कॉलेज बस मे
करती रोज़ सफर लड़की
पंख हौसलों मे
आँखों मे
बीज उम्मीदों के
कदम-कदम पर
नसीहतें
कोड़े ताकीदों के
सबको लेकर रखती सब पर
रोज नज़र लड़की
व्यंग्य, फब्तियाँ ,
छेड़-छाड़
ज़हरीली फुफकारें
भूखी –प्यासी
हत्यारी
नज़रों की तलवारें
एक साथ लाखों विषधर
ढोती तन पर लड़की
रुकें न उसके कदम
उसे
मंज़िल तक जाना है
अपने होने का
जग को
एहसास कराना है
इसीलिए सब सहकार
चुप रहती अक्सर लड़की