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लड़की / श्रीरंग
Kavita Kosh से
युग बदला पर अभी आँख में
खटक रही है लड़की ।
गहराई तो
सूरज ने सब पानी सोखा
लहराई तो
किया समय ने इससे धोखा
खुली सतह पर पपड़ी बनकर
चटक रही है लड़की ।
बचपन में तो सभी
खेलाया करते थे
कच्चे केश
सभी सहलाया करते थे
बड़ी हुई तो तस्वीरों संग
भटक रही है लड़की ।
मिले योग्य वर
कितने व्रत उपवास किए
पीपल बरगद
पूजे, बारे लाख दिए
फिर भी कुण्डलियों पर
आकर अटक रही है लड़की ।
भाग्य और
व्यक्तित्व हुआ सब काष्ठ-खिलौना
तोहफ़े में जो
मिला हुआ वह अग्नि-बिछौना
हीन भाग्य के आगे
माथा पटक रही है लड़की ।