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लड़की का रीतिकाल / दिविक रमेश
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वह और
कर भी क्या सकती थी
हथेलियों की ढाल बनाकर
आँखों से
झूठा-सा दिखने वाला गुस्सा ही तो
झिड़क सकती थी
मुस्टंडों के बीच
भाईचारे का-सा भाव
लाना ही पड़ा था
चेहरे पर
झूठी हँसी की कै करते
माथा तो फटा होगा
पर करती भी क्या
जे.जे.कालोनी की औरत जात
चतुर न बने
तो क्या करे