भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड्डू मोतीचूर के (गीत) / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अम्माँ ने हैं आज बनाए
लड्डू मोतीचूर के
बड़े दिनों के बाद में खाए
लड्डू मोतीचूर के।

मोती जैसी नन्हीं बूँदी
रही चाशनी में डूबी,
रंग चढ़ा उन पर केसर का
तब आई उनमें खूबी,
फिर मुट्ठी में बँधे-बँधाए
लड्डू मोतीचूर के।

नया जन्मदिन है दादा का
लूट रहे हैं खूब मजा,
नए-नए कपड़े पहने हैं
माथे पर है तिलक सजा,
उन्हें बधाई देने आए
लड्डू मोतीचूर के।