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लहरी आग नहीं / नचिकेता
Kavita Kosh से
आज अधूरे मन से तुमने
चुम्बन मुझे दिया ।
भरे कुचों की
छुअन नहीं गरमाहट भर पाई,
मँजरियों से लदी
आम की डाली लरुआई,
अन्तस्तल में सूखा, प्यासा
सावन मुझे दिया ।
तरु से लिपटी
अमरबेल में मिला कसाव नहीं,
आँखों के कोये
में टुह - टुह खिला गुलाब नहीं,
गरम सांस से रचा नरम
आलिंगन मुझे दिया ।
रगड़ी मेहुनाई
माचिस पर लहरी आग नहीं,
आलापन के
बावजूद गा पाया राग नहीं,
फिसलन भरी ढलानों का
आरोहण मुझे दिया ।