भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाज ना रहे / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
सिवा तुम्हारी दो बाहों के
कोई बन्धन आज ना रहे!
तेरे काँधे पर अपना सर
रखकर मैं मर जाऊँ क्या गम
तुझको मीत बनाकर सारा
जग बैरी कर जाऊँ क्या गम
तुम मेरे जीवन के हर
क्षण पर केवल नेह लिखो
जनम-जनम की प्यास बुझा दो
कोई राज़ राज़ ना रहे!
आओ, तपते अधर को अपने
तुम मेरे अधरों पर धर दो
नैंनों की हाला छलकाओ
साँसों में अनुरागी स्वर दो
चिन्तन हेतु बहुत बातें हैं
कर लेना पीछे को सजनी
लाज मेरी इच्छा की रख लो
बाकी कोई लाज ना रहे!