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लाज से सिर झुक जाता है / राजीव रंजन

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लाज से सिर झुक जाता है
जब देश आजादी की वीं वर्शगांठ मनाता है।
तो कहीं खुशी, कहीं लाज से सिर झुक जाता है।
आजादी मिली, पर इस बात का आज भी गम है।
देश को लूटने वाले क्या आज अंग्रजों से कम है।
अपने ही हाथों जब भारत माँ को लूटा जाता है।
देख यह सब आज लाज से सिर झुक जाता है।
अन्नदाता को अन्न नहीं, भूखे पेट वह सोता है।
भूख से विह्वल बच्चा उसका आज भी रोता है।
देख यह सब आज लाज से सिर झुक जाता है।
कहीं तो खुशियों का समन्दर ऊफनता है।
कोई दो बूँद खुशियों के लिए तरसता है।
देख यह सब आज लाज से सिर झुक जाता है।
कहीं रोशनी से ही आँखे चौंधियाती है।
कोई एक कतरे रौशनी के लिए तरसता है।
सूर्य भी आ जब कहीं सरहदों पर रूक जाता है।
देख यह सब आज लाज से सिर झुक जाता है।
गाँव की लाज आज जब खुले में शौच जाती है।
देख यह सब शर्म से आँखें झुक जाती है।
कर्णधारों के आँखों में फिर क्यों नहीं पानी आता है।
देख यह सब आज लाज से सिर झुक जाता है।
खून पी जब भेड़िया सफेद खाल में छिप जाता है।
स्वांग रचा हर बार वही राजा बन जाता है।
पाँच साल बाद बस लूटने वाला हाथ बदल जाता है।
देख यह सब आज लाज से सिर झुक जाता है।
खाली पेट जब कोई आज तिरंगा फहराता है।
सूखे कंठ ही जब कोई राश्ट्रगान गुनगुनाता है।
देख यह सब आज लाज से सिर झुक जाता है।
जब देश आजादी की वीं वर्शगांठ मनाता है।
तो कहीं खुशी, कहीं लाज से सिर झुक जाता है।