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लापता हैं मुस्काहनें / राजेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
लापता है मुस्कानें
आंसुओं के
इश्तओहार हैं
दर्द के महाजन के दोस्तोै हम कर्जदार हैं।
वक्त के थपेड़ों में
फंस गया होगा
सिर से पांव तक शायद धंस गया होगा
हो सकता है ये मौसम
आपको खुशगवार लगे
सच पूछिए तो भंयकर तूफान के आसार हैं।
दर्द के महाजन के दोस्तो हम कर्जदार हैं।
आंसुओं में
जीना भी मजबूरी है
आंसुओं को पीना भी मजबूरी है
बार-बार उन्हींर जख्मोंद को उधेड़कर
बार-बार सीना भी जरूरी है
नहीं पा सकते आप
मेरी घुटन का शतांश भी
आपके तो साहब तहखाने तक हवादार हैं।
दर्द के महाजन के दोस्तो हम कर्जदार हैं।