भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिया है आपने क्यों बेसबब बिन काम का पैसा / शुचि 'भवि'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिया है आपने क्यों बेसबब बिन काम का पैसा
हराम आमेज़ हो जायेगा ये आराम का पैसा

जो सड़ता है यहाँ बैंकों में मुर्दा लाश की सूरत
बताओ तो भला आख़िर वो है किस काम का पैसा

ग़रीबी देखती है चार दिन की रोटियाँ जिसमें
अमीरे शहर वो है बस तेरे इक जाम का पैसा

कभी रोटी मिली इक शाम की या फिर रहा फ़ाक़ा
मगर हो दान बाबा को बढ़ा हर धाम का पैसा

बदलती है यहाँ 'भवि' हर घड़ी क़ीमत मुहब्बत की
मिलेगा मोल क्या बोलो हो ख़ासो-आम का पैसा