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लुत्फ़ लेने शबाबों के शहर में / सुशील साहिल

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आया था लुत्फ़ लेने शबाबों के शहर में
हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शहर में

आलूदा है फ़ज़ाए-बहाराँ भी इस क़दर
ख़ुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शहर में

तहज़ीब-ए-कोहना और तमद्दुन नफ़ासतें
आया हूँ सीखने मैं नवाबों के शहर में

ऐसे हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन
हर सिम्त जाहेलां हैं किताबों के शहर में

बेहोश होने का गुमां न हमको हो सका
हर शख्स होश में है शराबों के शहर में

चेहरे पर सादगी है तो ज़ुल्फ़ें सुफ़ैद हैं
ये कौन आ गया है ख़िज़ाबों के शहर में