भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लूट आजादी / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
Kavita Kosh से
थरिया पर छै छीना-झपटी
चौक्हें लागै कपटी रे
कौआ-चील्हा भोज मनावै
खाय छै झपटी-झपटी रे।
तूं-तूं में-में थपड़ा-थपड़ी
कोरे छीनै लपटी रे
हड़िया भागै, चूल्हऽ भसकै
झलकै सगठैं खपटी रे।
एक दोसरें उटका-पैंची
आँखी चलावै कैंची रे
माटी के धूरा पड़त्है
आँख्हे मारै मटकी रे।
ई आजादी लूट मनावै
डौकी पैंची फटकी रे
जेकरा चाहऽ जन्नेॅ चाहऽ
लुटऽ हटकी-हटकी रे॥