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लेकिन / साहिल परमार / मालिनी गौतम

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प्रिय नीपा !
जो तुम्हें पसन्द है
उससे मुझे घिन आती है
जो मुझे पसन्द है
उससे तुम्हें घिन आती है
लेकिन फिर भी
मिल चुकी हैं निगाहें अपनी,

तुमने अपने बचपन में
पढ़े होंगे
चिकने पन्नों पर सचित्र छपे हुए
रामायण, महाभारत और गीता के श्लोक
मैं तो जब से अक्षर पहचानने लगा
तभी से देखता और पढ़ता आया हूँ
मेरी चाली के
सार्वजनिक शौचालयों की
पीली पड़ चुकी दीवारों पर
कोयले से बनाए हुए चित्र
और लिखावट,

‘बा बा ......बा बा ब्लैक शीप’ और
‘ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार’ से
शुरू हुई तुम्हारी शिक्षा ने
तुम्हें बात-बात में
‘थैंक्यू’ और ‘सॉरी’ कहने की
आदत दी है
लेकिन
‘एक बिल्ली मोटी’<ref>एक गुजराती बाल कविता</ref> से शुरू हुई
मेरी पढ़ाई ने
मैनरिज़्म से मुझे
योजनो दूर रखा है,

बैंक में आने वाले
उस बूटपॉलिश वाले लड़के को
तुम अपनी टेबल से दूर भगा देती हो
और मैं उसे
दो रुपए ज़्यादा देकर
उससे पॉलिश करवाता हूँ

किसी चाली के सामने से निकलते वक्त
तुम नाक पर रुमाल रख लेती हो
और मैं ऐसी ही किसी चाली में
आज भी आराम से
रात गुज़ार लेता हूँ,

और इसलिए ही
यहाँ आने के बाद
मेरे कपड़ों की साफ़-सफ़ाई
और मेरी भाषा की स्वच्छता से
आकर्षित होकर
जब तुमने मेरे सामने
रेस्टोरेण्ट में आइसक्रीम खाने का
प्रस्ताव रखा तब
जैसे ठण्डी आइस्क्रीम नहीं बल्कि
धकधकती आग का गोला
मुँह में रखना है
मैं इस तरह काँप उठा....

प्रिय नीपा,
तुम मुझे आकर्षित करती हो.... लेकिन……

प्रिय नीपा,
तुम मुझसे आकर्षित होती हो... लेकिन.....

मूल गुजराती से अनुवाद : मालिनी गौतम

शब्दार्थ
<references/>