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लेकिन तुम्हारे भीतर नहीं / दिनेश जुगरान
Kavita Kosh से
गुरुजी को
दृष्टि को अपनी
कर लो
गहरा
बस जाएगा पूरा बसंत जीवन में
बसंत
अपने और मौसम के बीच
कहीं कुछ अस्वीकार नहीं
न कोई विरोध
बाहर होगा सब कुछ
लोग दुख में चीखेंगे
खु़शी में नाचेंगे
रास्ते यथावत भीड़ भरे
गुज़रेगा सब कुछ
लेकिन तुम्हारे भीतर नहीं