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लेकिन वैसे नहीं / नरेश गुर्जर
Kavita Kosh से
बंद कमरे के नीम अंधेरे में
अधखुले दरवाजे की झिरी से
रोशनी आवाज की तरह आ रही है
जो मुझसे कह रही है कि
यह जो अंधेरे से निकल कर
दृश्य की धार को पार करते हुए
फिर से अंधेरे में लौट रहे हैं
समय के कुछ कण
क्या तुम इन्हें जानते हो?
मैं आंखें बंद कर के
धीरे-धीरे डूब रहा हूँ
स्मृतियों के स्याह भंवर में
मुझे कोई याद आ रहा है
लेकिन वैसे नहीं
जैसे मैं उसे
याद करना चाहता हूँ