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लैलख ममलखाँ / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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बेमतलब ही जीयै में
कत्तेॅ तेॅ दाफी
मतलब केरोॅ दुनियाँ ठो
गजुरी आवै छै
जना ममलखा केरोॅ करखैलोॅ जिनगी में
जागी उठलोॅ छेलै प्रेम भोरकवा रं ठो
बस हठासिये लैलख लेली।

वहा ममलखा
जे घोड़ी पर लादने कपड़ा
बिक्री करतें रहै बेचारा
चद्दर-गमछा आरो नै जानौं तेॅ की-की।

दिन भर फेरी गाँव-गाँव के
आरू रात खसला पर अपनोॅ सेठो कन जाय
चुकता करी हिसाब सभै ठो सौंसे दिन के
कहीं खुला में जाय केॅ रोजानै पसरी जाय
अभ्यासी ऊ
साल्हौं से बस यही करम के।
मिठबोलिया ठोॅ ममलखान के लाल लहू में
शीले नाँखि श्रम केरोॅ सोता ठो कलकल

एत्तेॅ सब होला के बादो
ओकरा आपनोॅ जीयै केरोॅ
कोय मकसद नै जरोॅ बुझावै
बस अपनोॅ हिस्सा रोॅ जिनगी
जियै छेलै थकचुसवोॅ रं
जना करोड़ोॅ ओकरे नाँखि
आकि वनों में उगै-फलै फल के गाछे ठो।

कोय्यो दिन के बात छिकै
कि कोय्यो गाँव री लैलख सें ऊ जाय भेंटैलै
लैलख, जै चूड़िहारिन छेली
गाँव-गाँव जाय बेचै छेली
रंग-बिरंगा चूड़ी केॅ
साथे-सथ में बेचै छेली
काँचोॅ के ऊ टुकड़ा साथें
अपनोॅ कबॉरी जिनगी केरोॅ सपनों ठो केॅ।

दोनों के जिनगी के जेना
शेष रहेॅ नै कुछुवो मतलब
तहियो दोनों मानी लेलकै
अपनोॅ-अपनोॅ जिनगी ठो में
एक दूसरा के दखल प्रेम केॅ
जे रं मछली पानी केॅ लै
आकि बूझै छै मनुख साँस केॅ।

निलुआ पगड़ी ममलखान रोॅ
वैमें लैलख देखै छेलै
अपनोॅ सपना रोॅ पनसोखा
आरो लैलख के बोली में
ममलखान केॅ लागै छेलै
अपनोॅ जिनगी के मतलब ठो
लैलख कभियो जे एकान्ती में
ममलखन सें कुछुवो बोलै
तेॅ ओकरा ओकरोॅ आँगोॅ सें
ऐतें मिलै केन्होॅ ठो खुशबू
जेकरोॅ छूटौं, भाँसेॅ लागै
ओकरोॅ बोली-वाणी में ही।

टक-टक ताकै, रहै ताकतैं
है रं कि ऊ बोलथैं रही जाय
आरो ओकरोॅ देहगन्ध ठो
झरतें रही जाय।

ऊ ओकरोॅ आँगोॅ-सीमा सें दूर
ओकरे हित लेॅ हरदम
बस अथाह गहराइये टा में
रहै उतरतै
जैमें ओकरोॅ आंग
हुवै चल्लोॅ जाय ओझल
जों कुछ बचै, तेॅ खाली वहा मतैलोॅ गन्धे
जानेॅ तेॅ ऊ कतेॅ देर होनै केॅ तैरै।

लैलख में
कत्तेॅ नी गाँमोॅ केॅ छौड़ा के जान बसै
मजकि ओकरोॅ तेॅ जान
ममलखान के निलुवै पगड़ी में फँसलोॅ, बस
दोनों के ही रहै ठिकानोॅ
अलगे-अलगे
मंतर ‘अंग’ के नील पहाड़ी के बीचोॅ में
बसलोॅ बस्ती
दोनों केॅ एक करी बस देलेॅ छेलै।

जब तांय दोनों के नेहोॅ के खिस्सा ठो के
पाँख उड़तियै ऊ गाँमोॅ में
तब ताँय तेॅ ऊ बस्ती के चानन नद्दी के
कत्तेॅ पानी बढ़ी गेलोॅ नी, चुप्पे-चुप्पे
आरो ऊ नद्दी के ऊपर रेल पुलो ठो
रेलोॅ के ऐला-गेला सें
थर-थर, थर-थर भेलोॅ छेलै, जेनां ठिठुरतें।

लैलख केॅ मालूम छेलै कि
ममलखान कत्तेॅ मोहित छै
ओकरोॅ अमृत रं बोली सें, बच्चे नाँखि
मजकि नै जानै छेलै ई ममलखान
कि ओकरोॅ निलुवे पगड़ी ठो में
लैलख केरोॅ प्राण बसै छै।
एकरा सें की,
दोनों एक दूसरा में डुबलोॅ
अपनोॅ बेमतलब केरोॅ ऊ जिनगी ठो केॅ
मतलब के दुनियां में चाहै
केन्हौं बसावौं।

आरो ही दिन ममलखान
अपनी घोड़ी पर
कपड़ा केरोॅ गट्ठर लादनें
नद्दी केरोॅ तीरा कोनी
बढ़लोॅ जाय छेलै कि तभिये
रेलपुलोॅ के ठीक सामनै
वहा पहाड़ी बस्ती के
जन के बोंहोॅ में
फँसी गेलै ऊ।

जनतां रेलपुलोॅ के पारें
एगो टीसन चाहै छेलै
यै लेॅ कि बस रेल धरै लेॅ
दसियो मील बुलै सें बचतै
मतुर बुझै की रेल कम्पनी
गोड़पड़िया के आन्दोलन सें
ई दाफी तेॅ
जन के बोहोॅ के गुस्सा ठो
स्वाधीनता सेनानी साथें मिली-जुली केॅ
बस उपटी ही पड़लोॅ छेलै।

सौंसे देश में
वहा बयालीस वाला क्रांति
उपटै छेलै
गांधी बाबा के ऐलान हवा में तैरे
‘कुछुवो कहोॅ, मरोॅ या फेनू’
हिन्हौं बोहोॅ जन के
ई तय करलेॅ छेलै
भोरकी अठबजिया रेलोॅ केॅ
पुल केॅ पार करै नै देवै।
ममलखान कुछ कहाँ बुझलकै

हौ दिन रेल सवारीवाला अठबज्जी सें पहले ऐलै
रेलपलोॅ सें छुकछुक करतें
मालगाड़ी ऊ हठासिये नी
आरो ओकरोॅ डब्बा सब सें
लाल-लाल ऊ पगड़ीवाला सब जवान ठो
निकली ऐलै
फेनू तेॅ आन्दोलनकारी सब जनता पर
कहर टूटलै गोरा सबके
भागमभाग मची गेलै जन के बोहोॅ में
गिरतें-पड़तें भागेॅ लागलै
आरोॅ
बरसो के गुस्सा ठो ठोस पहाड़ी
झूलेॅ लागलोॅ वहाँ हवा में
मतर तभीये
अचरज एक अजूबा भेलै
सब्भै नें देखलकै है कि
ममलखान टूटलै गोरापर
भुक्खा ज्यों टूटै छै गाजर-मूली पर छै।

भागी रहलोॅ भीड़ ठहरलै
फेनू सें टूटै लेॅ चाहै
ललकी पगड़ीधारी पर बाजोॅ के नाँखि
कैन्हें कि पैलेॅ छेलै सब अपनोॅ नेता
हहरैलै सब बोहे नाँखी
हेने कि लिलियै बस जैतै
दैंतोॅ सब केॅ।
फेनू वहा तड़ातड़ गोली
ओकरे ठो आवाज हवा में।
गिरलोॅ रहेॅ पहाड़े नाँखि
नदी किनारा में जननायक
भीड़ अभी बुझतियै कि तखनी
वही बीच सें निकली लैलख
शेरनी नाँखिये दै दहाड़ ऊ
बोलै लागलै
”भागोॅ नै
जालिम गोरा केॅ पकड़ोॅ-रौंदोॅ
अंगदेश के बेटा छेकौ, भूलोॅ नै ई।“

होतें रहलै वहा तड़ातड़ गोली केरोॅ
जनबोहो ठो बहतें रहलै वहा बीच सें
कत्तेॅ लोग समैलै वै ठां
कहवोॅ मुश्किल,
मतर आय तक समय गर्व सें फूली रहलोॅ
हाँसै देखी-
मालगाड़ी के डिब्बे में होय बन्द
फिरंगी भागी रहलोॅ युद्धभूमि सें
आबेॅ भीड़ बढ़ेॅ छै लागलोॅ
आरो जनबोहोॅ केॅ खोजतें
अपनोॅ नायक ममलखान दिश
आरो देखै छै कालें कि
ममलखान के ठठरी पर
लैलख गिरली छै, बस पछाड़ खाय
घूरै छै नीलुआ पगड़ी केॅ
फेनू तेॅ लिपटै लाशोॅ सें
जेना अलगतै कभियो भी नै।

चानन पर रेलोॅ के पुल ऊ
अभियो दै छै वहा गवाही
लैलख आरो ममलखान के बलिदानोॅ के
जैं देखलेॅ छै
आजादीरोॅ बादे बनतें
ठीक वहीं टां टीशन होतें
जेकरोॅ लैलख ममलखां ठो नाम धरैलै
दोनों के बेमतलब जिनगी
एक क्रांति केॅ होय समर्पित
जीयै के मतलब होय गेलै
ढेर लोगोॅ लेॅ।