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लो फिर ठंडक आ गयी / रंजना वर्मा
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लो फिर ठंडक आ गई, सज उट्ठे फिर मॉल।
लगे लिपटने देह से, जर्सी स्वेटर शॉल॥
ब्राण्डों के कपड़े नहीं, दे पाते वह चैन,
जो सुख हैं देते रहे, स्वेटर सालों साल॥
अम्मा कितने प्यार से, लेती उठ कर नाप,
रात रात बुनती रहें, हो-हो कर बेहाल॥
हर फंदे में माँ बहन, देतीं प्यार उंडेल,
सीत नहीं सिहरा सके, ऐसा करें कमाल॥
ताप कभी कब दे सकी, सिर्फ़ मशीनी वस्तु,
गर्माहट है प्यार में, रखिये सदा सँभाल॥
सुख सुविधाएँ बढ़ रहीं, होते जन सम्पन्न,
लेकिन हुए दरिद्र हम, फँसे यंत्र के जाल॥
अब पनीर बेस्वाद है, नहीं दूध में स्नेह,
सब के नहीं नसीब में, सुख की रोटी दाल॥