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लोकतंत्र / अरविन्द यादव
Kavita Kosh से
लोकतंत्र
जिसके मूल में है
धर्म निरपेक्षता
सामाजिक, आर्थिक और
राजनीतिक आजादी
दलित, पिछडों, गरीबों की
अभिव्यक्ति का उदघोष
जाति और धर्म की दीवारों से मुक्त
समतावादी समाज की कल्पना
जो दे सके एक स्वस्थ सुंदर व
अखंड भारत
जहाँ रह सकें सब मिलकर एक साथ
ब्राह्मण और शूद्र बनकर नही
वल्कि मानव बनकर
जो दे सकें सन्देश
मानवता का विश्व को
परन्तु दुर्भाग्य
आज इतने वर्षों बाद भी
हर गली हर रोड पर
हर चौराहे हर मोड़ पर
हर दुकान हर घर पर
हर मंदिर हर मस्जिद पर
मारा जा रहा है
बेमौत कुत्ते की तरह
लोकतंत्र
और लोकतंत्र का ख्वाब
उस पर मडराते हुए गिद्ध
कर रहे है नुमाइश
उसकी लाश की
कौवे खींच कर ले जा रहे हैं
उसके चीथड़े
अपने घोंसलों तक
ताकि खा सकें परिवार के संग
मिल बांटकर।