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लोगेॅ कैहैनें पढ़ाय छै / मृदुला शुक्ला

Kavita Kosh से
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माय गे माय’ लोगें कैहनें पढ़ाय छै?
बाबु साब के नुनुवां जे पढै़ छै,
उ किताब केन्हीॅ लागै छै;
छूवें में चिकनोॅ-चिकनोॅ; केला के गब्भार रं;
सुन्नर-सुन्नर देखै में रामलीला के रामोॅ रं।
देखी-देखी मोॅन लोभाय छै। माय गे!
पढ़ी-पढ़ी मुस्काय छेलै जखनी रामचन्नर
झांकलियै उझकि केॅ; कुछ नें देखलियै अन्दर।
कारोॅ-कारोॅ लिखलोॅ; मांछी रं बुझाय छै। माय गे!
किताबोॅ के जग्घो बनाबै लेॅ पड़ै छै।
बड़का राती तक जागै लेॅ पड़ै छै।
कागदोॅ पर लिखै में सुर-सुर बुझाय छै। माय गे!
कहै छै; किताबोॅ में सब्भे बातोॅ के गियान छै।
ओतना तेॅ हभरौ आवै छै, जे गियान छै।
तइयो हम्मैं मूरख; राम चन्नर विदमान कहाय छै। माय गे!
गाइयो के बारे में बड़कां किताबोॅ में पढै छै।
पोखरी अ तालाबोॅ के नक्शा देखै छै।
यहेॅ सिनी बातें हमरा हँसी लगाय छै। माय गे!
पढ़ै में लागै छै ढेर सिनी मेहनत।
मजबूत छीयै टोला में हन्मूं अलबत।
मतरकि लोग भात के साथंे
किताबोॅ के दाम केना जुटाय छै?
माय गे सब्भैं कैन्हें नी पढ़ाय छै?