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लोप / समृद्धि मनचन्दा

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एक लोप है जो
बार-बार ढूँढ़ लेता है मुझे

किसी अछूते विलोम तले
होती हूँ....जब

जब सहजता में विलुप्त रहूँ
तब भी

और तब भी जब मैं
आसानी से प्राप्य रहूँ

एक लोप है जो
श्वास से सटकर चलता है

मेरे लुप्त होने की प्रतीक्षा में
मण्डलाते हैं किसी विचार में गिद्ध