भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोरी अम्मा ! / गिरीश पंकज
Kavita Kosh से
ओ री अम्मा, ओ री अम्मा,
देखूँ सूरत तोरी अम्मा ।
नींद नहीं आती है मुझको,
सुना जरा तू लोरी अम्मा ।
ओ री अम्मा, ओ री अम्मा ।।