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लोहा बन गया हूँ मैं / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
सरल मार्गों का
अनुसरण कब किया मैंने
खाई- खन्दक से भरी जमीन पर
योद्धा बन कर गुजरा हूं मैं
धूप में तपकर
अनगिनत रूपों में ढला हूं मैं
वक्त ने सौंपे जो भी काम
हंसते हुए पूरा किया उन्हें
कभी थका नहीं
पहाड़ों पर चढ़ते हुए
लोहा बन गया हूं मैं
झेलते- झेलते ।