भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौट आओ / जीवनानंद दास / चित्रप्रिया गांगुली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लौट आओ समुद्र के किनारे
लौट आओ सीमान्तर पथ पर
जहाँ ट्रेन आकर रुकती है

आम, नीम और झाओ के संसार में
लौट आओ

एक दिन नीले अण्डे बोए थे तुमने
आज भी वे शिशिर की नीरवता में हैं

पंछियों का झरना होकर
वे मुझे कब महसूस करेंगे ?

मूल बांग्ला से अनुवाद : चित्रप्रिया गांगुली