लौट शहर से आते भाई / धीरज श्रीवास्तव
लौट शहर से आते भाई!
कुछ तो फर्ज निभाते भाई!
चाचा की गाँठों में, पीड़ा
रोज बहुत ही होती है!
चाची भी है दुख की मारी
बैठ अकेले रोती है!
छूट गया है खाना पीना
आकर दवा कराते भाई!
पहन चूड़ियाँ लीं तुमने या
मुँह पर कालिख पोत लिया!
जबरन उसने खेत तुम्हारा
पूरब वाला जोत लिया!
आते तुम इस कलुआ को हम
मिलकर सबक सिखाते भाई!
रामलाल की बेटी सुगवा
उसकी ठनी सगाई है!
जेठ महीने की दशमी को
निश्चित हुई विदाई है!
पूछ रही थी हाल तुम्हारा
उससे मिलकर जाते भाई!
इधर हमारे बप्पा भी तो
इस दुनिया से चले गये!
तीरथ व्रत सारे कर डाले
चलते फिरते भले गये!
दिल की थी बीमारी पर वे
हरदम रहे छुपाते भाई!
बात नहीं कोई चिन्ता की
देखभाल कर लेता हूँ!
गाय भैंस को सानी भूसा
पानी तक भर देता हूँ!
और ठीक पर तुम चल देना
फौरन खत को पाते भाई!