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लौटते हुए / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
तुम मौसम की तरह
मेरे शहर से चले गए हो
यह जानते हुए भी
क्यों मैं हर सुबह
कच्ची धूप-सी
उन रास्तों पर
उतर आती हूँ, जिन पर
तुम्हारी उँगली थामकर
चलना सीखा था मैंने--!