भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त उड़ता-सा चला जाता है / नीरज गोस्वामी
Kavita Kosh से
वक़्त उड़ता सा चला जाता है
जब कोई साथ मुस्कुराता है
साँसें बोझिल सी होने लगती हैं
जब भी वो याद मुझको आता है
ख़ार ज़ालिम है हँसता डाली पर
गुल है मासूम तोड़ा जाता है
चाहे जितना ख़याल आप करें
कैद पँछी तो फड़फड़ाता है
बात दिलकी ज़ुबाँ से बोल ज़रा
देख फिर कौन साथ आता है
देखता तितलियाँ वो ख़्वाबों में
बच्चा नींदों में मुस्कुराता है
कौन पढ़ता किताब रिश्तों की
हर कोई वर्क पलट जाता है
वो है दुश्मन कि दोस्त है मेरा
पहले लड़ता है फिर मनाता है
एक दौलत ही प्यार की नीरज
उसकी बढ़ती है जो लुटाता है