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वक्त / रेखा
Kavita Kosh से
क्यों दौड़ता है पीछे
हाँफ रहा वक्त
शिकारी कुत्तों की तरह
लपलपाती जीभ का
आदमखोर आतंक
लगातार हाँकता है
सुरक्षा के आश्वासन की ओर
हर छाया एक छद्म छल है
और भी नंगा करके
स्वयं छितरा जाती है
बोटी-बोटी में
चीख़ उठती है
गड़ते हुए दाँतों की चुभन
थक जाता है विरोध
चुक जाता है बचाव का हठी प्रयास
निरायास काया
फेंक दी जाती है
वक्त के कुत्तों की तरफ
सिर्फ सूँघ कर छोड़ देते हैं जिसे
उन्हें तो दौड़ना है
जिजीविषा के पीछे
श्मशान के दरवाज़े से
स्वयं थककर लौट जाएगा
हाँफते हुए कुत्ते-सा
आदमख़ोर वक्त