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वन्दना / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
नमन शारदे माँ के चरणों मे करते देते सम्मान।
क्षुद्र बुद्धि हम बालक तेरे माँग रहे हैं तुमसे ज्ञान।।
ज्योति जला दो विमल ज्ञान की दूर करो जड़ता अविवेक
निर्मल बुद्धि विवेक अलौकिक ज्ञान मान माँ करो प्रदान।।
हों निर्दोष विचार हमारे सदा जागता रहे विवेक
गर्व करें निज कर्मों पर माँ किन्तु न हो किंचित अभिमान।।
हंसवाहिनी धवल शाटिका श्वेत पद्म-श्रृंगारित देह
चरण धो रहा जल सुरसरि का गुंजित वेद मंत्र लय तान।।
मिले आशिषा मात तुम्हारी रचे लेखनी अभिमत काव्य
बहे अजस्र धार कविता की गूँजे दिशि दिशि मंगल गान।।