भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वन्दे मातरम् ! / राकेश रंजन
Kavita Kosh से
वन्दे मातरम् !
बीच सड़क पण्डाल बनेगा
जो भी हो हर हाल बनेगा
जैकारा हरकिरतन होगा
निसदिन व्योम-प्रकंपन होगा
इसीलिए तो घर-घर जाकर
माँग रहे हैं
चन्दे मातरम् !
गुण्डागर्दी दुश्चरित्रता
हमें न इनका नाम भी पता
सदा दूध के धुले हुए हम
देश-धरम को तुले हुए हम
जो हमको गन्दा कहते हैं
वे तो ख़ुद हैं
गन्दे मातरम् !
जिनसे भारत-भूमि उदासी
म्लेच्छ अवर्ण तथा वनवासी
कुलच्छनी निर्लज्ज नारियाँ
रचनाकारों की कुठारियाँ
सबको हम चौरस कर देंगे
मार-मारकर
रन्दे मातरम् !
भारत हिन्दुस्थान हमारा
भगवा संघ-विधान हमारा
हमीं महत्तम लट्ठ नचाते
हमीं जगत्-सर्वोत्तम, माते
सिवा हमारे जो हैं सब हैं
तव चरणों के
फन्दे मातरम् !