वन्दे मातरम् / अष्टभुजा शुक्ल
1.
गेहूँ की कुशाग्र मूँछों पर गिरी वृष्टि की गाज
काली-काली भुङुली वाली बाली हुई अ-नाज़
हुए अन्नदाता ही दाने-दाने को मोहताज
भिड़े कुकुरझौंझौं में राजन महा ग़रीबनवाज़
2.
पँगु पाँव, गूँगी जबान, लकवा से लूले हर कर
आँख-आँख मोतियाबिन्द सूझे परिवार न घर वर
चौपट हुई रबी ऐसे कि प्राण-पखेरू तड़पें
बादल बरसे नहीं गगन से एसिड मूते छर-छर
3.
रबी गई सो गई खरीफ़ गई सूखे से
मुँह सूखे सूखे से पेट युगों भूखे से
गश खा-खा गिर गए खेत में ग्राम देवता
हरे भरे से रुख़ खड़े रूखे-रूखे से
4.
धान हुए कुश धरती में दरार की अनगिन रेखा
मुँह में जूठ नहीं लगने के आगम घर-घर देखा
आँख, आँख की ओर ताक, मुँह लेती फेर, सिसककर
कागज-पत्तर में सूखा-सैलाब का लेखा-जोखा
5.
आसमान का दिल पत्थर हो गया ऐन बसकाल
चमके गरजे तड़के भड़के फिर भी पड़ा अकाल
काँख-काँख रह गए न झलकीं जल की बून्दें
पकड़ा करक जलधरों को बेआब हुए तत्काल
6.
बना भव्य कॉम्प्लेक्स काँच का नामक भूल भुलइया
बिक्री हुई अपार लक्ष्य के पार बाप रे दइया
बड़के कोविद बिके यसों दस बीस डिजिट डालर में
हुआ चित्रपट फिल्मी-इल्मी सबसे बड़ा रूपइया
7.
सूचकाँक मत देखो टोपी नीचे गिरी दरोगा
मूत में रोहू खोज रहे पोंगा के पोंगा
अबकी ऐसी क़िस्मत — लेखक आए हैं कि
राष्ट्र कनक भूधराकार मिण्टों में होगा
8.
सुजला रोज़ निर्जला होती वन्दे मातरम्
विफला बनकर सुफला रोती वन्दे मातरम्
धुधुआकर जल रही चतुर्दिक् शस्य-श्यामला भूमि
जाति-धर्म की होती खेती वन्दे मातरम्