वफादारी / दामिनी
वो अपनी बीवी से
झूठ बोलकर आया है,
और प्रेमिका के लिए तोहफे में,
ताजमहल लाया है,
यूं तो बीवी के बिना उसके
जूते-टाई-कच्छे-रुमाल तक
नहीं मिल पाते हैं,
सर पर चढ़ा होता है चश्मा
और वो पूरे घर में ढूंढ़ आते हैं,
पर प्रेमिका जब गले में
अपनी सुडौल बांहें सजाती है,
सारी दुनिया उसे बिन चश्मे के ही
रंगीन नजर आती है,
बीवी को आखिरी तोहफा उसनेे
चार साल पहले दिया था,
जब तीसरी बेटी ने
घर की पांचवीं सदस्या के रूप में
इजाफा किया था,
बीवी इस ‘गुनाह’ से अब तक
उबर नहीं पाती है,
इसीलिए सुन-सह-मान लेती है
इसकी हर बात,
खुद कभी कुछ नहीं सुनाती है,
इन ‘गुनाहों’ ने उसे काफी
अंतर्मुखी बना रखा है।
बिस्तर पर भी एक बुलाहट-भर से ही
काफी बोरिंग ढंग से
पसर जाती है,
न नाज न नखरे
न अंगड़ाइयों के जलवे दिखाती है।
बस घरेलू कामों में
सुबह से आधी रात तक नहीं झलकता है,
वरना तो उसका ‘ढीलापन’
शरीर के हर अंग से टपकता है।
प्रेमिका में अब तक
अदाओं की गर्मी है,
सो इसमें भी उसके लिए
अब तक वफाओं की नर्मी है।
तीन साल से इसके अलावा,
कहीं आंख नहीं घुमाई है,
वरना पंद्रह साल की गृहस्थी में,
यही तो इनकी तीसरी और ‘आखिरी’
बेवफाई है,
बीवी के साथ तो सपने भी
ब्लैक एंड व्हाइट ही आते हैं,
अब तो बस प्रेमिका के नाम पर ही होंठ
रंगीनियत से मुस्कुराते हैं।
ऐसा नहीं है कि बीवी
इसकी प्रेमिका के बारे में नहीं जानती है!
इनके बालों की बदलती लट और
महकते बदन की बेवफाई
वो सालों से पहचानती है।
‘ये रोज सुबह चाहे जितनी दूर
निकल जाते हैं,
शाम को ‘लौटकर’ तो
इसी घर में आते हैं’
बीवी बेवफाई के बंटते ताजमहल को
कर देती है नजरअंदाज
बस मनाती है इतना कि
घर से बाहर ही रहे हर आंच
अपने घर की दहलीज से ही वो
अंतिम चिता तक जाना चाहती है
इसीलिए हर रोज
इस बेवफा पति की सेज पर
पूरी वफादारी से खुद को बिछाती है।