भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वरदान / राजू सारसर ‘राज’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अष्टभुजी परमेसरी
अैक पुरूस परवाण
सात देवी सात किन्यां
सातां रो सतकार......।
रोजीनां पढूं
ओ ई मंतर
घणैं नैठाव सूं
राखूं नौरता निराहारा
कंजकां रा पगल्या धोय’र
करूं पूजण
जीमाऊं बैठा’र आंगणैं
सालीणौं ई
जाऊं जात ठेठ पल्लू ई
माता जी राजी होय’र
देवैला स्यात वरदान
जलमण रो घरां
अैक बेटो।