वरदान है हिन्दी / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
देश की भक्ति का भाव जगा,
जगा प्रेम अखंड समुद्र-सा छाया।
दे तुलसी का समुज्ज्वल मानस,
हिन्दी ने हिन्द का मान बढ़ाया।
प्रेम-प्रसून चढ़ा चरणों पर,
है जनता ने इसे अपनाया।
भाषा बनी परिभाषा स्वदेश की,
एकता ने दृढ़ सम्बल पाया।
राष्ट्र के भाषा समूह का बन्धुओं,
मंगल उज्ज्वल सार है हिन्दी।
जागे समन्वय मध्य अमीर गरीब
के ऐसी उदार है हिन्दी।
भारत की सुचि सभ्यता को
दिया रूप नया सदाचार है हिन्दी।
भेंट करें जग को हम क्या? अरे
प्यार भरा उपहार है हिन्दी।
नया रूप समाज को दे रही और
कुरूपता नित्य हटा रही हिन्दी।
पिया खूब हलाहल है फिर भी
अब नित्य सुधा बरसा रही हिन्दी।
पलती रहे शान्ति सदा जग में,
जग में यही भाव जगा रही हिन्दी।
फहरा दिया झंडा स्वतन्त्रता का,
वसुधा पर धाक जमा रही हिन्दी।
नीरव शान्ति का शोभन रूप है,
जाग्रति स्वर्ण-विहीन है हिन्दी।
सूर, कबीर, घनानन्द, केशव
के स्वरों से स्वरवान है हिन्दी।
राष्ट्र की एकता और अखंडता
के लिए तो वरदान है हिन्दी।
बिन्दी है भारत माता के भाल की,
भारत की पहचान है हिन्दी।
ज्ञान की पूनम से उर में घिरा,
मेह तमिश्र विदारती हिन्दी।
घोर विरोध की पावक में पड़,
कुन्दन रूप् निखारती हिन्दी।
रूढ़ियों से हटी नित्य नया-नया
सोचती और विसारती हिन्दी।
विश्व में भारत भारती की छवि
को है सजाती संवारती हिन्दी।
गन्धित आम्र निकुंज में शोभित,
कोकिला-सी मृदु बोलती हिन्दी।
अद्रि से आती पयस्विनी-सी
मरुभूमि का पौरुष तोलती हिन्दी।
घोल रही रस काव्य में है,
चली मत्तगमन्द सी डोलती हिन्दी।
रश्मि दिवाकर की बनी विश्व के
लोचन वारिज खोलती हिन्दी।