वर्मियर की नई नायिका / देवेश पथ सारिया
विजयश्री तनवीर के लिए
नीले और पीले रंगों को
पसन्द करने वाली वह लड़की
उस दिन आकाश ओढ़कर आई थी
जो एक बित्ते भर की देह पर
गाढ़ा नीला हो उठा था
एक प्रिय रंग से देह ढाँप
पीला उसने सौंप दिया था प्रेमी को
एक ट्रांस की अवस्था में था युवक
जब पड़ गया था प्रेम में
अन्यथा बटोही था वह
किसी दूसरे महाद्वीप का
लपेटकर सूरजमुखी का पीत रंग
चला गया वहाँ
जहाँ मनुष्यों जितनी लम्बी होती है घास
गर्मी पड़ती है हर समय
लड़की ने जोही बाट
दोनों के हिस्से की सर्दियों की
और प्रेयस की कि वह लौट आए घास से
डरती रही
कि कोई जादू न चल गया हो उस पर
क्या पता कि मान चुका हो प्रेयसी
घास या घसियारिन को
थकी आँखों ने
धीरे-धीरे छोड़ दिया
ताकना रास्ता
हर कल्पना का उसने
दुखान्त पर उपसंहार किया
नीले आकाश वाली दोपहर से अधिक
शाम की लालिमा से प्यार किया
कई साल बाद
उपमाएँ दे रहा था कोई कलाकार
उस तस्वीर पर
जिसमें लड़की ने ओढ़ा था
आसमान का रंग —
“किसी अलक्ष्य निस्सीम में झाँकतीं
बेदाग़ निश्छल आँखें
मानो जोहानस वर्मियर की पेंटिंग —
‘गर्ल विद अ पर्ल इयरिंग’
का सजीव प्रतिरूप
एक दूसरे रंग के लिबास में”
वर्मियर की कला उपेक्षित रही थी
दो शताब्दियों तक
और आज दीवानी है दुनिया
उसकी चालीस से भी कम ज्ञात पेंटिंग्स की
दो दशक से
अपने मोती को टाँगे
करती रही यह तस्वीर भी
नीले वैभव के बखान का इन्तिज़ार
इतने में बज गई कुकर की सीटी
और चली गई नायिका
तसवीर से निकलकर
रसोई में
जहाँ गैस की लौ में
नीली-पीली उदासी थी
ख़बर नहीं क्या हुआ होगा
कान में बाली पहनी
शताब्दियों पुराने मूल चित्र की
उस गुमनाम नायिका का
दो दशक बाद
वर्मियर की
इस नई नायिका की आँखों में
निस्सीम नहीं
शून्य था !