भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वसंत फागुनी गाया / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रसवंती रसधार,सरस तनमन हर्षाया ।
झंकृत वीणा तार,वसंत फागुनी गाया ।।

बहे बसंत बयार,पथ वीथिका हर्षित मन ।
बिखरे रंग फुहार,गुनगुना उठती काया ।।

सखि आयो ऋतु कंत,लगे प्रीतम मनभावन ।
छोड़ न जाना हंत,संग तेरे मन भाया ।।

सनई करे पुकार,सरपत कुशा ललचाई ।
सन सन उड़े कपास,हरित पीत रंग छाया ।।
 
सरसों करत विलास,अलसी नैन मटकाई ।
मटर चना के हास,खेतन मंह लहराया ।।

नव किसलय की प्यास,भ्रमर मनको भटकाये ।
कुहुकति भरत मिठास,कोकिला गान सुहाया ।।

प्रेम कामना आज, मधुर संदेश सुनाई ।
पग-पग बिछी बिसात,गुलाल होलिका माया ।।