वसंती बहै छै / मुकेश कुमार यादव
बहै छै, बहै छै, वसंती बहै छै।
बड़ी बाबली, मनमौजी बहै छै।
बहै छै, बहै छै।
कानों में कहै छै।
चलै छै, इतराय।
रहै छै, नितराय।
कहीं मौज-मस्ती।
देले छै, छितराय।
झूमै छै, घूमै छै।
मस्ती में चूमै छै।
बसंती बहै छै।
हँसै छै, हँसाय छै।
प्यारो लुटाय छै।
चना-खेत-सरसौ, झुलाय के देखाय छै।
हिलाय के देखाय छै।
डोलाय के देखाय छै।
खेता-खेत सुतलो, झोली के जगाय छै।
बोली के जगाय छै।
है अल्हड़, है पगली।
बड़ी भोली बबली।
नञ् चिंता फिकर छै।
बड़ी है निडर छै।
घुमै हिन्ने-हुन्ने।
अनोखी कहै छै।
वसंती बहै छै।
लागै छै घुमक्कड़।
भुलक्कड़ छै धुक्कड़।
शहर के है लुक्कड़।
गपक्कड़-बुझक्कड़।
नुक्कड़ के छक्कड़।
अजुबा गपक्कड़।
नञ् घर के ठिकाना।
नञ् दुश्मन जमाना।
नञ् प्रेमी, नञ् पागल, नञ् आसिक-दिवाना।
जेना मन भेलै, होनै है चलै छै।
वसंती बहै छै।
खुशी में पली छै।
बड़ी मनचली छै।
गली में चली छै।
मची खलबली छै।
केकरौ नञ् खली छै।
गेंदा रो कली छै।
गुलाबी कली छै।
गमा-गम महकै।
झमा-झम झमकै।
सरंगो भी चमकै।
मने-मन बहकै।
पंछी रंग चहकै।
मस्ती में रहै छै।
वसंती बहै छै।
शहर-गांव-बस्ती।
बौराय गेलै मस्ती।
भुलाय गेलै हस्ती।
नञ् मौका परस्ती।
नञ् महंगा, नञ सस्ती।
जेना मन कूहकै।
बिजुवन टुहकै।
अमराई घुमै छै।
झूला झुलै छै।
मनो के बहलाय छै।
गमों के भुलाय छै।
फूलो के फूलाय छै।
महकाय छै, फुसलाय छै।
खुशी के देखलाय छै।
हँसी के देखलाय छै।
यहीं रंग बस्ती।
है मौका के मस्ती।
घूमै छै, फिरै छै।
वसंती बहै छै।
नदी-खेत-पोखर।
पहाड़ी रो ठोकर।
है भूसा, है चोकर।
है लोफड़, है जोकर।
सब्भे दुःख खोकर।
मचललो है जाय छै।
उछललो है जाय छै।
यहाँ से वहाँ तक।
नजर छै जहाँ तक।
असर छै जहाँ तक।
शहर छै जहाँ तक।
कहर छै जहाँ तक।
शरम छै जहाँ तक।
रहम छै जहाँ तक।
नरम छै जहाँ तक।
गरम छै जहाँ तक।
भरम छै जहाँ तक।
करम छै जहाँ तक।
धरम छै जहाँ तक।
वहाँ तक चलै छै।
वसंती बहै छै।
सुबह-शाम टेरै।
आम-महुआ के फेरै।
गेहूँ केरो बाली।
फूलो सब रो लाली।
देखी मतवाली।
बजाबै छै ताली।
मनमोही-निराली।
बड़ी भोली-भाली।
चढ़ी नखरा वाली।
है दुधो रो प्याली।
खाली बिल्कुल खाली।
बेकारी रो गाली।
बेगारी रो गाली।
खलै नञ् छलै छै।
जब मस्ती चढ़ै छै।
वसंती बहै छै।
बागों में जब देखलां।
बहारो में देखलां।
गीत गायन में देखला।
गुनगुणायन में देखलां।
बटोही के टोही।
छेड़ी रहै छै।
वसंती बहै छै।
तीसी के नञ् छोड़ै।
तुअर के नञ् छोड़ै।
तोड़ै मरोड़ै।
गाछी बेल फोड़ै।
पहर दू पहर या चारों पहर तक।
हँसी के नहर तक।
खुशी के शहर तक।
बहै छै कहर तक।
हँसै खेत सरसौ।
आज-कल नञ् ते परसौ।
हँसी के उमंग छै।
खुशी केरो संग छै।
वसंती है रंग छै।
हँसै छै, कहै छै।
सब दुःख सहै छै।
वसंती बहै छै।