वसीयत / मृदुला शुक्ला
आगू के धिपलोॅ, तपैलोॅ सड़क,
पीछू के अन्हरिया गल्ली,
देश केरोॅ भावी पीढ़ी
लीखी देनंे छिहौं तोरा वसीयत में।
दूर-दूर तक लागलोॅ
बबूल केरोॅ गाछ
मुलसैलोॅ, मुरझैलोॅ फूलोॅ रोॅ पांत
लड़ै रोॅ सौ-सौ बहाना खोजै वाला
मनु-पुत्रोॅ के पुरानोॅ जात
ई सब देनें छियौ तोरा वसीयत में।
मतरकि आसरा में छी हम्में,
इन्तजारोॅ के घड़ी गिनै छै वक्त,
कि सायत इ चक्रव्यूह केॅ
कोय अभिमन्यु तोडै।
झूट और छल के दैत्योॅ केॅ,
बांही सें झंझोडेॅ़।
कैन्हें कि सच यहेॅ छै,
कि झूठ होय गेलोॅ छै,
कान्हा पर रखलोॅ शस्त्र।
बेमानी होय गेलोॅ छै आपना केॅ योद्धा
कहलाबै के दंभ।
यही सें आगू के धिपलोॅ, तपलोॅ सड़क,
आरु पीछू के अन्हरयिा गल्ली सें भयग्रस्त होय केॅ
हम्में इन्तजारोॅ में छी आय।
कि सायत कोय अभिमन्यु ई वसीयत के बदला में,
आपनोॅ कच्चा रं उमिर हरियैलोॅ पाण्डव केॅ देॅ जाय।