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वह : दो / सुनील गज्जाणी
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वह मन्दिर के पथ की ओर हमेशा जाता है
मगर मूर्ति के दर्शन कभी नही करता
रूक जाता है परिसर में
भूखों को खाना खिलाने
वृद्धों की सेवा करने
असहायों की सेवा करने
वह, ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन की चाह रखता है।